सरस्वती स्तोत्र

विद्या में सफलता के लिए नित्य पढ़ें सरस्वती स्तोत्र
यदि आप  विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो कठिन परिश्रम, नियमित अभ्यास के साथ -२ निम्नलिखित सरस्वती स्तोत्र का भी नियमित एक बार पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ करने से बुद्धि तीव्र हो जाती है और एकाग्रता बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप आप परीक्षा में आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। 
 इस स्तोत्र को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के बुद्धवार से आरम्भ करके रोज एक बार पढ़ना चाहिए। 
 दोहा : जनक जननि पदम् दुरज, निज मस्तक पर धारि। बन्दौ मातु  सरस्वती बुद्धि बल दे दातारि ।।
 पूर्ण जगत में व्याप्त तब, महिमा अमित अनन्तु। राम सागर के 
 पाप को, मातु तुहिं अब हन्तु ।।
 जय श्री सकल बुद्धि बल रासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी। जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी ।।
रूप चतुर्भुज धारी माता, सकल विश्व अन्दर विख्याता। जग में पाप बुद्धि जब होती, तबहिं धर्म की धीकी ज्योति ।।
तबहिं मातु का निज अवतारा, पापहीन करती महि फारा। बाल्मीकि जी थे हत्यारा, तव प्रसाद जानै संसारा ।।
रामचरित जो रचै बनाई, आदि कवि पदवी की पाई।  कालिदास जो भये विख्याता, तेरी दृष्टि से माता ।।
तुलसी सूर आदि विद्वाना, भये जो और ज्ञानी नाना। तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा, केवल कृपा आपकी अम्बा ।।
करहु कृपा सोई मातु भवानी, दुखित दीन निज दासहिं जानी। पुत्र करई अपराध बहूता, तेहि न धरहिं चित्त सुन्दर माता ।।
राखु लाज जननि अब मेरी, विनय करहुँ भांति बहु तेरी। मैं अनाथ तेरी अवलम्बा,कृपा करउँ जय जय जगदम्बा ।।
मधु कैटभ जो अति बलवाना, बाहु युद्ध विष्णु से ठाना। समर हजार पांच में धोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला, बुद्धि विपरीत भई खलहाला। तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ।।
चण्ड-मुण्ड जो थे विख्याता, क्षण महु संहारेऊ तेहि माता।रक्तबीज के समरथ पापी, सुरमुनि हृदय धरी सब कापी ।।
काटेउ  सिर जिम कदली खम्भ, बार -बार विनवहु जगदम्बा, जगप्रसिद्ध जो शम्भु निशुम्भा, क्षण में बधे ताहि तु अम्बा ।।
भरत मातु बुधि फेरउ जाई, रामचन्द्र बनवास कराई।एहि विधि रावन वध खीन्हा, सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा ।।
को समरथ तब यश गुन गाना, निगम अनादि अनन्त बखाना। विष्णु रूप अजसकहिन मारी, जिनकी हो तुम रक्षा कारी ।।
 रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी। दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गानाम सकल जग लीन्हा ।।
दुर्ग आदि हरनी तु माता, कृपा करहु जब-जब सुखदाता। नृप कोपित को मारन चाहै, कानन में घेरे मृग नाहै ।।
सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफ़ान नहीं कोउ संगे। भूत-प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में ।।
नाम जपे मंगल सब होइ, संशय इसमें करई न कोई।  पुत्रहीन जो आतुर भाई, और छाड़ि पूजें एहिं माई ।।
करें पाठ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा। धूमाधिक नैवैद्य चढ़ावे, संकट रहित अवश्य हो जावे ।।
भक्ति मातु की करै हमेशा, निकट न आवै ताहि क्लेशा। बन्दी पाठ करे सतबारा, बन्दी पाश दूर हो सारा ।।
राम सागर बुद्धि हेतु भवानी, कीजे कृपा दास निज जानी। 
 दोहा :
मातु सूर्य कांति तव, अन्धकार मम रूप। डूवन से रक्षा करहुँ, परुँ न  मैं भव कूप ।।
बल बुद्धि विद्या देहुँ मोहिं, सुनहुँ सरस्वती मातु, रामसागर  अधम को आश्रय तूहि ददातु ।।      


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