अष्टोत्तरशत सूर्य स्तोत्र
अष्टोत्तरशत नामक सूर्य स्तोत्र भगवन सूर्य प्रत्यक्ष देवता है। समस्त वेद , पुराण , ग्रन्थों में भगवान सूर्य की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन है। वेदों के अनुसार सूर्य उत्पत्ति परमात्मा की आँखों से हुई है। सूर्य ही दिन-रात का विभाजन करते हैं। इन्हीं द्वारा समस्त संसार की सृष्टि , स्थिति और संहार होता है। ऋग्वेद में वर्णित है कि सूर्य ही अपने तेज से सबको प्रकाशित करते हैं। सूर्य की पत्नी छाया और पुत्र यम और शनिदेव हैं। सूर्य ज्योतिष शास्त्र में सिंह राशि के स्वामी , रत्नों में माणिक्य रत्न के अधिपति हैं। इनका रथ स्वर्णमयी है जिसमे सात घोड़े जुते हैं , इस रथ का एक पहिया है और इस रथ को सारथि अरुण हांकते हैं। महर्षि याज्ञवल्क्य ने सूर्यदेव की उपासना कर ' शुक्लयजुर्वेद ' को लिखा था। सूर्य भगवान के वरदान से द्रौपदी ने अक्षय पात्र प्राप्त किया था। यहाँ तक की महर्षि अगस्त द्वारा उपदेशित ' आदित्य हृदय स्तोत्र ' का पाठ करके ही भगवान श्रीराम ने रावण के ऊपर विजय प्राप्त की थी। योगशास्त्र में इड़ा और पिंगला दो नाड़ियाँ हैं उनमे इड़ा चन्द्रमा की तथा पिंगला...
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