वडवानल स्त्रोत्र
कोर्ट -कचहरी मुकदमा या शत्रुओं पर विजय दिलवाता है
वडवानल स्त्रोत्र
वडवानल स्त्रोत्र
यदि आप कोर्ट -कचहरी ,
मुक़दमे से परेशान हैं या आपको शत्रु
अकारण परेशान कर रहे हैं तो नित्य प्रति सुबह नहाधोकर लाल वस्त्र पहनकर अपने घर
पूजा स्थान में बैठ जायें तथा अपने सामने लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र
बिछाकर उस पर श्री हनुमान जी की फोटो स्थापित करें। हनुमान
जी को गुड चने का भोग लगाएं
तथा सिन्दूर अर्पित कर धुप दीप दिखाकर
संछिप्त पूजा कर लें। इसके पश्चात
वडवानल स्तोत्र के २१ जाप करें। पहले
दिन २१ जाप करके आपको लगातार ४० दिन
तक ११ पाठ करने हैं। इस स्तोत्र के पाठ
करने से शत्रु शांत होते हैं व
कोर्ट -कचहरी में मुक़दमे में विजय मिलती
है।
श्री गणेशाय नमः।
ॐ अस्य श्री हनुमद वडवानल स्तोत्र
मन्त्रस्य। श्री रामचन्द्र ऋषिः। श्रीवडवानल हनुमान देवताः मम समस्त रोग
प्रशमनार्थ आयु रा रोग्यैश्ववर्याभिवृद्धयर्थ समस्त पापक्षयार्थ सीता रामचन्द्र
प्रीत्यर्थच हनुमद वडवानल स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
हाथ के जल को दाहिनी और जमीन पर छोड़ दे।
अब वडवानल स्तोत्र का जाप आरम्भ करें।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महा हनुमते प्रकट पराक्रम सकल दिडमण्डल यशोवितान धवलीकृत जगत त्रितय वज्रदेह रुद्रावतार लंकापुरीदहन उमा -अमल मन्त्र उदधि बधन दश शिरः कृतांतक सीताश्वसर वायुपुत्र
अंजनीगर्भसंभूत श्री राम लक्ष्मणानन्दकर कपिसैन्य प्रकार प्रकार सुग्रीव साहा रण
पर्वतोत्पाटन कुमार ब्रह्माचारिन
गंभीर नाद सर्व पापग्रह वारण सर्व
ज्वरोच्चाटन डाकिनी विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर वीराय सर्व दुःख
निवारणाय ग्रह मंडल सर्वभूत मंडल सर्व पिशाच मण्डलोच्चाटन भूतज्वर एकाहिक
ज्वर द्वायहिकज्वर,
त्र्याहिकज्वर, चतुर्थोज्वर संताप
ज्वर, विषज्वर,
तापज्वर माहेश्वर, वैष्णव ज्वरान,
छिन्दि छिन्दि यक्ष ब्रह्मराक्षस भूत
प्रेत पिशाचान उच्चाटय उच्चाटय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रौं ह्रः आं हां हां हां ॐ सौं एहि श्री
महाहनुमते श्रवण चक्षुर्भूतानाम शाकिनी डाकिनानं विषम दुष्टानाम सर्व विषम
हर हर आकाश भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय
ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकल माया भेदय भेदय ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ नमो भगवते
महाहनुमते सर्व ग्रहोच्चाटन परबल क्षोभय क्षोभय सकल बंधन मोक्षणं कुरु कुरु
शिरः शूल गुल्म शूल सर्वं शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नाग पाशानन्त वासुकि
तक्षक कर्कोटक कालियान यक्षकुल जलगत बिलगत रात्रीचरम दिवाचरम्
सर्वानंनिर्विषं कुरु कुरु स्वाहा। राजभयं चोरभयं परमंत्र परतंत्र परविद्याश्छेदय स्वमंत्र स्वयंत्र स्वतंत्र स्वविद्या प्रकटय
प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्व शत्रुनाशय असाध्य साधय साधय हुं
फट स्वाहा।
इति विभीषणकृतं हनुमद्वडवानल स्तोत्रम सम्पुर्णम्। ।
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