चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र
चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र से
बढ़ाएं अपनी नेत्र ज्योति एवं दूर करें नेत्र विकार
अगर आपकी नेत्र ज्योति कमजोर है और बचपन में ही आपको चश्मा पहनना
पड़ गया है
तो इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र के नियमित
जप से आप भी अपनी नेत्र ज्योति (Eye
Sight) ठीक कर सकते हैं। यह चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र इतना प्रभाव शाली है की यदि आपको आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी है तो अगर एक ताम्बे
के लोटे में जल भरकर,
पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित
इस स्तोत्र के २१ बार पाठ
करने के उपरान्त उस जल से दिन में ३-४
बार आँखों को छींटे मारने पर कुछ ही
समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती
है। बस आवश्यकता है ,
श्रद्धा, विश्वास एवं अनुष्ठान
आरम्भ करने की। आईये इस स्तोत्र
को जानते हैं।
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष रविवार
को सूर्योदय के आसपास आरम्भ करके रोज इस
स्तोत्र के ५ पाठ करें। सर्वप्रथम भगवान सूर्य नारायण का ध्यान करके दाहिने हाथ में जल,
अक्षत, लाल पुष्प लेकर
विनियोग मंत्र पढ़े।
विनियोग मंत्र : ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुधन्य ऋषिः
गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षुरोगनिवृत्तये विनियोगः।
अब इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें।
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव। मां
पाहि पाहि। त्वरितम्
चक्षुरोगान शमय शमय। मम जातरूपम् तेजो दर्शय दर्शय। यथाहम
अन्धो न स्यां कल्पय कल्पय।
कल्याणम कुरु कुरु। यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानी चक्षुः प्रतिरोधकदुष्क्रतानि
सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।
ॐ नमः करुणाकरायामृताय। ॐ नमः सूर्याय।
ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे
नमः। खेचराय नमः।
महते नमः। रजसे
नमः। तमसे नमः।
असतो मां सदगमय। तमसो मां ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो
भगवाञ्छुचिरूपः। हंसो भगवान शुचिरप्रतिरूपः। य
इमां चक्षुष्मतिविद्यां
ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो
भवति। न तस्य कुल अन्धो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान
ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति।
हिंदी
भावार्थ :
विनियोग: 'ॐ इस
चाक्षुषी विद्या क ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं, गायत्री छन्द है, सूर्यनारायण देवता हैं तथा
नेत्ररोग शमन हेतु
इसका जाप होता है।
हे
परमेश्वर, हे चक्षु
के अभिमानी सूर्यदेव। आप मेरे चक्षुओं में चक्षु के तेजरूप से स्थिर हो जाएँ। मेरी रक्षा
करें। रक्षा करें। मेरी आँखों का रोग समाप्त करें। समाप्त करें। मुझे आप
अपना सुवर्णमयी तेज दिखलायें। दिखलायें। जिससे में अँधा न होऊं। कृपया
वैसे ही उपाय करें,
उपाय करें। आप मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। मेरे जितने भी पीछे जन्मों के पाप
हैं जिनकी वजह से मुझे
नेत्र रोग हुआ है उन पापों को जड़ से उखाड़ दे, दें। हे सच्चिदानन्दस्वरूप
नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यस्वरूपी भगवान भास्कर आपको नमस्कार है। ॐ
सूर्य भगवान को नमस्कार है। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान सूर्यदेव आपको
नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी आपको नमस्कार है। परमश्रेष्ठ स्वरुप आपको नमस्कार है। ॐ रजोगुण रुपी
भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार
है। तमोगुण के आश्रयभूत भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। हे भगवान आप मुझे
असत से सत की और
जाईये। अन्धकार से प्रकाश की और ले जाइये। मृत्यु से अमृत
की और ले चलिये। हे सूर्यदेव आप उष्णस्वरूप हैं, शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप
भगवान सूर्य, शुचि तथा
अप्रतिरूप रूप हैं। उनके तेजोमयी स्वरुप की समानता करने वाला कोई भी नहीं है। जो ब्राह्मण
इस चक्षुष्मतिविद्या का
नित्य पाठ करता है उसे कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होता है। उसके
कुल में कोई अँधा
नहीं होता। आठ ब्राह्मणो को इस विद्या को देने (सिखाने) पर इस विद्या
की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
नेत्र रोग
शमन के लिए अन्य उपयोगी सूर्य साधनाएं :
(१) नेत्र
रोग से पीड़ित व्यक्ति प्रतिदिन सुबह हल्दी के घोल से अनार की कलम से इस यन्त्र को
कांसे की थाली में बनाये।
फिर उस यंत्र
पर तांबे की थाली में चतुर्मुख (चार बत्ती वाला) घी का दीपक जलाये। फिर लाल पुष्प, चावल, चन्दन
आदि से इस यन्त्र की पूजा करें। इसके बाद पूर्व दिशा की और मुख करके बैठ जाएँ। और
हल्दी की माला से "ॐ ह्रीं हंसः" इस मन्त्र की ७ माला जाप करें। उसके
पश्चात ऊपर लिखा चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र 12 पाठ करें व अन्त में "ॐ ह्रीं
हंसः" मन्त्र की पुनः ७ माला जाप करें। इसके बाद भगवान सूर्य को सिन्दूर
मिश्रित जल से अर्घ्य दें व अपना नेत्र रोग की ठीक होने की प्रार्थना करें।
(२) नेत्र रोग को
ठीक करने हेतु इस अक्ष्युपनिषद स्तोत्र का पाठ भी अत्यंत लाभकारी है।
हरिः ॐ।
अथ ह सांकृतिर्भगवानादित्यलोकम जगाम। स आदित्यं नत्वा चक्षुष्मतिविद्यया तमस्तुवत।
ॐ नमो भगवते श्रीसूर्यायाक्षितेजसे नमः। ॐ खेचराय नमः। ॐ महासेनाय नमः। ॐ तमसे
नमः। ॐ रजसे नमः ॐ सत्वाय नमः। ॐ असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा
अमृतं गमय। हंसो भगवाञ्छुचिरूपः अप्रतिरूपः। विश्वरूपम घृणिनं जातवेदसं हिरण्यमयं
ज्योतिरूपं तपन्तम्। सहस्र रश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः। ॐ
नमो भगवते श्री सूर्यायादित्या याक्षितेजसे अहोवाहिनी वाहिनी स्वाहेति। एवं
चक्षुष्मतिविद्यया स्तुतः श्रीसूर्यनारायणः सुप्रीतो ब्रवीच्चक्षुमतिविद्यां
ब्राह्मणो यो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ
ब्राह्ममाण ग्राहयित्वाथ
विद्यासिद्धिर्भवति। य एवं वेद स महान भवति।
मुख्य शब्द : वैदिक
ज्योतिष, आध्यात्मिक अनुष्ठान, चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र, सूर्य स्तोत्र
Key Words: Vedic Jyotish, Adhyatmic Anushthaan,
Chakshushopnishad Stotra, Surya Stotra
Thank you ... I pray my vision is fully restored.
ReplyDeleteGlory to our Ancient Wisdom.
Glory to Surya
Om namaha Aadityaay
ReplyDeleteKya vinoyog mantra pratidin path prarambh karne se uchharan karna hai?
ReplyDeleteक्या 21 बार वाले अनुष्ठान में भी विनियोग कहना होगा?
Viniyog pahli baar bas
DeleteThnks
ReplyDeletejai shree krishn.
ReplyDeleteIs mantra ki nyash
ReplyDeletevidhi kya hai